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भा.प्रौ.सं.कानपुर
भा.प्रौ.सं. कानपुर का इतिहास

भा.प्रौ.सं. कानपुर: संक्षिप्त इतिहास

कैसे उत्कृष्टता के लिए प्रतिबद्ध एक प्रमुख संस्थान अस्तित्व में आया

"जब मैं भा.प्रौ.सं. कानपुर के निदेशक के रूप में कार्यभार ग्रहण करने के लिए पहली बार कानपुर आया तो कानपुर में मुझसे मिलने वाले लगभग प्रत्येक व्यक्ति ने पूछा क्या मैं पेशेवर रूप से आत्महत्या करना चाहता हूं, तो मुझे इसकी बिल्कुल भी चिंता नहीं होती थी क्योंकि मैं, अब मैं नहीं था बल्कि ऐतिहासिक प्रक्रिया का एक साधन था"

(प्रोफ़ेसर पी.के. केलकर द्वारा 17 मई 1981 को दिये गये दीक्षांत भाषण का सटीक अंश)।

भा.प्रौ.सं. कानपुर पांच फर्स्ट जनरेशन भा.प्रौ.स. में से एक है जिसे 2 नवंबर 1959 को 1860 के सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम XXI के तहत पंजीकृत किया गया था। प्रारंभ में, संस्थान ने 1959 में हरकोर्ट बटलर तकनीकी संस्थान के साझा परिसर में कार्य करना प्रारंभ किया, जिसमें एक साधारण संकाय एवं 100 छात्रों को शामिल किया गया था। वर्तमान में, इसका अपना विशाल आवासीय परिसर है, जिसके अंतर्गत लगभग 10000 छात्रों, 555 संकाय सदस्यों एवं 1500 से अधिक कर्मचारियों का आवास निहित है।

वैश्विक सहकार्यता

वैश्विक सहकार्यता

स्थापना के प्रारंभिक वर्षों (1962-1972) में, संस्थान को कानपुर इंडो-अमेरिकन प्रोग्राम के तहत संयुक्त राज्य अमेरिका के 9 अग्रणी संस्थाओं द्वारा मार्गदर्शन प्राप्त था। इसमें कैलिफोर्निया प्रौद्योगिकी संस्थान, कार्नेगी प्रौद्योगिकी संस्थान (वर्तमान में, कार्नेगी मेलन विश्वविद्यालय), केस प्रौद्योगिकी संस्थान (वर्तमान में, केस वेस्टर्न रिजर्व विश्वविद्यालय), मैसाचुसेट्स प्रौद्योगिकी संस्थान, ओहियो राज्य विश्वविद्यालय, प्रिंसटन विश्वविद्यालय, पर्ड्यू विश्वविद्यालय, बर्कले का कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय एवं मिशिगन विश्वविद्यालय शामिल है। इसका लक्ष्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उच्चतम स्तर की शिक्षा प्रदान करने वाली एक संस्था का निर्माण करना था जिसके फलस्वरूप बौद्धिक भंडार तैयार किया जा सके जो वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सके।

नियोजित एवं भूदृश्यित परिसर

नियोजित एवं भूदृश्यित परिसर

भा.प्रौ.सं. कानपुर, शहर से लगभग 15 किलोमीटर पश्चिम में ग्रैंड ट्रंक रोड पर स्थित है एंव इसका क्षेत्रफल लगभग 1055 हेक्टेयर है। संस्थान के निर्माण हेतु भूमि वर्ष 1960 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दी गई थी, और मार्च 1963 तक, संस्थान अपने वर्तमान स्थान पर स्थानांतरित हो गया था। संस्थान के आवासीय परिसर को भारतीय विशिष्ट ग्रामीण क्षेत्र के अनुरूप सावधानीपूर्वक निर्मित किया गया था जिसमें खड़ी फसलें, आलीशान बबूल के जंगल, आम के बगीचे, मोर के झुंड एवं पक्षियों की अन्य प्रजातियां थी, जिनमें से अधिकांश आज भी परिसर में मौजूद हैं। केंद्रीय अकादमिक क्षेत्र रेजिडेंस हाल, संकाय एवं कर्मचारी आवास, सामुदायिक भवनों एवं अन्य आधारभूत ढांचे से घिरा हुआ है जिसका निर्माण उप हिमालयी जैव विविधता को बनाए रखते हुए किया गया था। इस विशाल भवन का निर्माण, दिल्ली स्थित वास्तुकार श्री अच्युत कनविंदे ने किया था। अपनी स्थापना के पश्चात ही, संस्थान ने देश के प्रत्येक हिस्से से विद्वानों को अपनी ओर आकर्षित किया। भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विविधता भा.प्रौ.स. कानपुर की परिसरीय गतिविधियों में भी परिलक्षित होती है।

उत्कृष्टता हेतु प्रतिबद्ध

उत्कृष्टता हेतु प्रतिबद्ध

अपनी स्थापना के बाद से, भा.प्रौ.सं. कानपुर अनुसंधान एंव शिक्षण के क्षेत्र में सबसे अग्रणी रहा है। इसने खुद को देश के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उच्च प्रतिष्ठा वाले शैक्षणिक संस्थान के रूप में मजबूती से स्थापित किया है। इन वर्षों के दौरान, संस्थान ने खुद को फिर से परिभाषित किया है तथा विज्ञान-आधारित अभियांत्रिकी शिक्षा, सेमेस्टर प्रणाली, संगणक विज्ञान अभियांत्रिकी के निर्माण के नए प्रतिमान लाए हैं - जिनका भारत में कई संस्थानों ने अनुकरण किया है। शैक्षणिक कठोरता, अत्याधुनिक विघटनकारी अनुसंधान, सहभागी गैर-पदानुक्रमित शासन, लचीली क्रेडिट-आधारित कार्यक्रम उन्नति पर इसके जोर को इसके साथियों द्वारा मान्यता दी जाती है एंव इसे संस्थानों में अपनाया जा रहा है। इसके पूर्व छात्रों को शिक्षा, उद्योग एंव अनुसंधान प्रयोगशालाओं, सार्वजनिक प्रशासन एंव सामाजिक कार्यों के विविध क्षेत्रों में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए दुनिया भर में प्रशंसा मिली है।

भा.प्रौ.सं. कानपुर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का केंद्र, अनुसंधान का पावरहाउस एंव नवाचार का केंद्र बिंदु है। संस्थान एक जीवंत रचनात्मक केंद्र बनने की आकांक्षा रखता है, जिसमें वैश्विक प्रभाव एंव राष्ट्रीय विकास पर जोर देने के साथ सर्वोत्तम शैक्षणिक अनुसंधान एंव आउटरीच शामिल हो।